श्री धाम वृन्दावन रूपी महा अगाध रस-सिंधु श्री राधा-कृष्ण एवेम श्री सखिगण-रूपी रतन तरंगो की मालावली को निज ह्रदय पर धारण कर परम अन्दोलित हो अनंत काल से रस गर्जना करता हुआ सुशोभित होट रहा है !
उत्कण्ठा, उल्लास,अभिलाषा,पिेपासा,जिज्ञासा इत्यादि रूप मौक्तिको को निज,अन्त:स्तल से अनवरत प्रकट करता हुआ परमहंस रसिकजनो के लिये रहस्यमय बना हुआ उनके मन को चमत्कृत एवम वशीकृत किए हुए जगमगा रहा है !
दर्पनवत जल द्रवित प्रकाश अथवा प्रकाशित द्रव चिदाभास की ओर अग्रसित कर निरन्तर विराजमान है ! श्री राधा-कृष्ण की सर्वोपरि महनियता ही इसका परम धन है!
श्रीप्रिया-श्रीप्रियतम,श्रीसखिगन, श्रीलतापता, श्रीविपटपतरू, श्रीरजरेणु, श्रीकोकिल, कीर, मयूर, चातक, सारिका, चकोर आदी पक्षीगण श्रीकमल, कुब्जादी पुष्प, श्रीरविजा, श्रीरसिकजन, श्रीनाम, श्रीचिन्मय, काम-रति, श्रीलांड ,मनुहार एवम श्रिसुखचित, रसचित गहन गंभीर केली व चेष्टा अबाध-अनवरत प्रवाह इस वरिधी के चौदह ,अजा अदभूत-अतुलनीय रत्न है !
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